कुर्सी मैय्या कुर्सी बाप.........?
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कुर्सी भी क्या चीज बनाई है ऊपर वाले ने जो भी इसके नजदीक तक जाता है वह इसी का हो कर रह जाता है । कुर्सी का नशा ही ऐसा है कि कुछ लोगों को कुर्सी के नशे में आस-पास कोई नहीं दिखता ,लेकिन कुछ लोगों को केवल उनके नजदीकी रिश्तेदार नजर आजाते हैं बस। इसलिऐ उनके द्वारा सारी कृपा दृष्टी अपने परिवार पर ही अटक कर रह जाती है।सरकारी कर्मचारी हो या अधिकारी उसकी कुर्सी स्थाई होती है भले ही राजनीति के चाक्करॊं के बीच पिसता हुआ कभी किसी शहर में तो कभी किसी शहर में डोलता फिरे फिर भी उसका ठसका ही निराला होता है आखिर सरकारी कुर्सी जो है उसके पास।
राजनीति की कुर्सी का टेस्ट कुछ अलग ही तरह का होता है ।भले ही उनकी कुर्सी टेम्परेरी होती है लेकिन भारतीय परम्परा के अनुरूप वह हमेशा सरकारी कुर्सी पर भारी रही है। इसीलिऐ एक आई.ए.एस.अधिकारी भी मंत्री, विधायक, वार्ड पार्षद और सरपंच के आगे पीछे घूमता नजर आयेगा।आखिर लोकतंत्र है जानता मालिक है सबकी ।अधिकारी क्या है भला नौकर है जनता का ।उसे तो हाथ बांध कर खडा होना ही होगा ,चाहे मंत्री जी अपने विभाग की ए.बी. सी. डी. भी नही जानता हो। अब इसे हमारे देश का सोभाग्य कहें या दुर्भाग्य कि एक आंगूठा टेक व्यक्ती देश का शिक्षा मंत्री तो बन सकता है लेकिन उसी मंत्रालय का चपरासी नहीं बन सकता ।
राजनीति में कुर्सी पर बैठ ने वाला भले ही टेम्परेरी हॊ लेकिन कुर्सी मैय्या तो आयुर्वेदिक दवाई की तरह बिना एक्सपायरी डेट की ही होती है इसीलिऐ राजनीतिज्ञों को समय समय पर जनता से अपनी मियाद बढ़्वाने के लिऐ जनता के दरबार में आना पड़ता है\और जनता बेचारी भी क्या करे वह केवल यह ढ़ूढ़ती है कि कौन कम भ्रष्ट है बस फिर लगा देती है ठप्पा अगले कार्यकाल के लिऐ। क्योंकि उसे अच्छी तरह मालूम है कि चोर -चोर मोसेरे भाई ।आखिर किससे और कहाँ तक बचेंगें ।
आप कुछ भी कहें कुर्सी का गरूर अलग ही होता है । उसपर बैठते ही लोगों की चाल-ढ़ाल ही बदल जाती है।तभी अक्सर लोग कहते भी है कि कुर्सी मिलते ही तेंवर बदल गए। बदलने भी चाहिऐं आखिर कुर्सी का नशा ही कुछ ऐसा होता है \इसीलिऐ मेरा मानना है कि कुर्सी मैय्या कुर्सी बाप, कौन खेत की मूली आप।। राजनीती में वैसे भी कुर्सी पाना कोई बच्चों का खेल नहीं है ।लोगों की जिंदगी गुजर जाती है कुर्सी के लिऐ दंड पेलते हुऐ तब जाकर बडे नसीब से मिल पाती है कुर्सी मैय्या......? कई लोग तो बेचारी कुर्सी की आस में आखिरी सांस तक छोड़ देते है और दिल के अरमानों को आंसुओं में बहाने के लिऐ छोड़ जाते है अपना भरा पूरा परिवार जो जिंदगी भर उन्हें बददुआओं के अलावा कुछ नहीं दे पाता ।
हमारी श्रीमती जी की भी बड़ी हसरत थी या यूँ कहिऐ कि अभी भी है कि हम भी कहीं से अपने लिऐ कोई अच्छी सी कुर्सी की जुगाड़ लगवालें। लेकिन भला उनकी किस्मत किसी भावी नेता की पत्नी जैसी कहाँ....? उन्होंने कई बार हमें समझाते हुऐ कहा कि आपके इस कलम घसीट अभियान से कुछ नहीं होने वाला। किसी भी सत्ताधारी दल के नेता की पूँछ पकड्कर कुछ अच्छा सा लिख दो बस। या फिर कुछ नेतओं के सम्मान में अच्छे से कसीदे गढ़ दो....सरकारी योजनाओं का गुणगान करो, फिर देखना हम कहाँ से कहाँ पहुँच जाऐगें ।आपके लिऐ कहीं न कहीं तो कुर्सी रिजर्व हो ही जाऐगी ।ओर यदि आपने कुर्सी का इस्तेमाल ढ़ंग से कर लिया तो अपने भी वारे न्यारे हो ही जाऐगें।अपनी तो पूरी पीढ़ी ही तर जाऐगी ।आपकी आने वाली सात पीढ़ियां तक आपका गुण गाऐंगी ।
अब आप ही बताऐं कि हम भी सरस्वती जी को छोडकर भला कुर्सी के लिऐ अपने आपसे गद्दारी कैसें करें झूठे यश गान कैसे गाऐ,यदि देश को आजाद कराते वक्त वे लोग भी कुर्सी मैय्या की गोद में जा बैठते तो आज भी गुलाम ही होते ।वैसे भी कलम में सच लिखने की ताकत बड़ी मुश्किल से आती है ।मेरा तो बस यही कहना है--
मुबारक हों उन्हीं को,ये मखमली बिस्तर
मुझे तो टाट पे सोने की आदत सी हुई है ॥
डॉ. योगेन्द्र मणि
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पूरा व्यंग्य शान्दार है
ReplyDeleteपर ये बेहद मजेदार रहा
" कुर्सी मैय्या कुर्सी बाप,
कौन खेत की मूली आप"
पे पंक्तिया काफ़ी देर घूमती रही
फ़िर जो कुछ घूम रहा था उससे मैने इन दो पंक्तियो को इस तरह से
बडाने की कोशिश की है कि
कुर्सी मैय्या कुर्सी बाप,
कौन खेत की मूली आप
दुनिया भर की बाते छोड
जैसे भी हो कुर्सी पा
कुर्सी होगी तो सबको
पुण्य लगेंगे तेरे पाप
कुर्सी मैय्या कुर्सी बाप,
कौन खेत की मूली आप
उसके आगे पीछे ही
सारी दुनिया होती है
जिसके सिर पे लगी दिखे
ऊंची कुर्सी वाली छाप
कुर्सी मैय्या कुर्सी बाप,
कौन खेत की मूली आप
दुनिया भर की बाते छोड
जैसे भी हो कुर्सी पा
कुर्सी होगी तो सबको
पुण्य लगेंगे तेरे पाप
कुर्सी मैय्या कुर्सी बाप,
कौन खेत की मूली आप
किसम किसम के देखे जब
तब जाकर ये पता चला
सबसे ज्यादा जहरीले
होते हैं संसद के सांप
कुर्सी मैय्या कुर्सी बाप,
कौन खेत की मूली आप
कुर्सी की महिमा पर तुमनें मेरी पंक्तियों को बहुत ही अच्छी तरह आगे बढ़ाया है\वास्तव में आज कथित नेताओं के लिऐ कुर्सी के आगे सभी आदर्शे एक तरफ धरे रह जाते हं ।
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