Monday, March 9, 2009

काल करे सो आज कर

काल करे सो आज कर

उद्‌घाटन,भाषण और जय-जय कार से भला किसको प्यार नहीं होता।वह भी जब ,जबकि आपको सत्ता की कुर्सी मिली हो।कल ही की बात है कि सुबह-सुबहश्रीमती जी ने हमारे हाथ में कैंची जा थमाई।हम हैरान....!हमारे मन में अंदर ही अंदर सैकड़ों घोड़े दौड़ने लगे।हमने पूछा -भाग्यवान आज कहीं उद्‌घाटन का फीता काटने जाना है क्या,जो हमारे हाथ में कैंची जा थमाई...?वैसे यदि कहीं उद्‌घाटन करने जाना भी है तो वहाँ कैंची तो मिल ही जयेगी,इसे साथ में लेजाने की भला क्या जरूरत....?
इतना सुनते ही श्रीमती जी की भृकुटी तन गई बोली-तुम्हें भला कौन बुलाऐगा उद्‌घाटन करने के लिऐ।तुम कोई मंत्री ,एम.पी.,या एम.एल. ए.हो या कहीं के वार्ड़-पार्षद हो जो कोई तुम्हें फीता काटने के लिऐ बुलाऐगा...?ये कैंची तो मैनें धार तेज करवाने के लिऐ दी है,कल नई सरकार के नये-नये मंत्री जी नाले की पुलिया का उद्‌घाटन करने आ रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि इस कैंची से रिबन भी नहीं कटे और पुलिया का ट्रेफिक हमेशा के लिऐ जाम ही हो जाऐ.......?
श्रीमती जी जिस पुलिया की बात कर रही थी उसपर आवाजाही नियमित रूप से काफी दिन पहले ही प्रारम्भ हो गई थी।लेकिन बिना शिलालेख लगे भला भावी पीढ़ी को कैसे मालूम पड़ेगा कि इस पुलिया का उद्‌घाटन फलां श्रीमान जी ने किया था ।और ओपचारिक रूप से उसपर चलकर दिखाया था कि देखो ड़रने की कोई बात नहीं है।मैनें पुलिया पार कर ली है....मजबूत है.... नहीं गिरेगी। यदि गिरेगी भी तो हम निश्चित रूप से मुआवजा देगें ...चिन्ता न करें..।
किसी भी सरकारी योजना को प्रारंभ करना हो,सड़्क निर्माण हो,पुल हो या कोई अन्य भवन...।सभी दलों के लोग सत्ता में आते ही ऐसे कार्यों को विशेष प्राथमिकता देते हैं जिसमें उनके नाम का चमचमाता शिलालेख लगना हो और उसपर उद्‌घातन कर्ता के रूप में उनका नाम लिखा हो।
सत्तामें आने पर जब शिलान्यास का पत्थर लगाया जात है तो राजनैतिक आवश्यकताओं को घ्यान में रखते हुऐ उस योजना को पूरे पाँच वर्षों तक लटकाना उनकी नैतिक आवश्यकता बन जाती है।ताकि अगले चुनाव में वे शान से अपने अधूरे कार्य पूरे करने के लिऐ एक ओर मौका आपसे बिना झिझक माँग सेके।
अब यह फैसला जनता को करना है कि जिससे शिलान्यास का पत्थर लगवाया,उसीसे उस योजना की इती श्री होने पर उद्‌घाटन भी उसी से करवाऐं या फिर कुछ नया करने के विचार से नए लोगों को सत्ता सुख का लाभ देते हुऐ अन्य को मोका दें।
अब भला यदि किसी को बना बनाया बंगला मिल जाये तो उसपर अपने नाम की प्लेट लगाने में भला किसी का क्या जाता है।ऐसे काम तो जितनी जल्दी कर लिऐ जायें उतना ही अच्छा रहता है।कल का कोई ठिकाना नहीं...कल क्या हो....?इसीलिऐ कहते हैं -
काल करे सो आज कर आज करे सो अब
न जाने कुर्सी कब हिले उद्‌घाटन करेगो कब॥
तभी तो इन पंक्तियों को ध्यान में रखते हुऐ एक मुख्यमंत्री जी ने तो चुनाव के पूर्व आचार संहिता लगे जिससे पहले ही एक दर्जन से भी अधिक योजनाओं के शिलान्यास पट्ट एक ही जगह पर रखकर उनका अनावरण कर दिया और फिर आवश्यकता अनुसार उन्हें यत्र तत्र सर्वत्र भेज दिया गया और स्थान ढ़ूढ़कर लगा दिया गया \..है न नायाब तरीका ...समय की बचत..पैसे की बचत...और नाम भी हो गया....।शायद यह अपने आप में एक अलग ही उदाहरण होगा एक साथ इतनी अधिक योजनाओं के पट्ट लगाने का....?
यह अलग बात है कि शायद शिलान्यास करने वालॊं को भी याद नहीं होगा कि मैने किस-किस योजना का शिलान्यास किया है और कहाँ-कहाँ पत्थर लगाऐ हैं..?हमारी जनता जनार्दन भी आजकल कम समझदार नहींहै वह उनसे भी चार कदम आगे है।उसने भी ऐसी पटकी लगाई कि पट्ट चिपकाने वालों को उद्‌घाटन फीता काटने का मौका ही नहीं दिया और फीता काटने के लिऐ कैंची दूसरों के हाथों में जा थमाई।इसीको तो कहते हैं शिलान्यास और उद्‌घाटन की सत्ता में संतुलन,,..........।


डॉ.योगेन्द्र मणि

3 comments:

  1. अच्छा व्यंग्य है , मैं इसे अपने ब्लोग पर भी लगा रहा हू

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  2. अच्छा व्यंग है .........
    बहुत अच्छा लिखा है

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