Thursday, June 1, 2023

दो हज़ार का नोट

दो हज़ार का नोट …. ————————(व्यंग्य) डा योगेन्द्र मणि कौशिक
सुबह सुबह श्रीमती जी न जाने किस उठा पटक में लगी थी ।अलमारी का सारा सामान बाहर ……… एक -एक कोने का बारीकी से निरीक्षण ……….कभी मेरी पेंट की जेबों की तलाशी ,तो कभी पर्स की ,…………..कुछ समझ नहीं आ रहा था की आख़िर माजरा क्या है ? आज तो सुबह की चाय भी उनकी इस पड़ताल के नाम पर शहीद हो गई ।वैसे तो रोज़ सुबह सुबह आँख खुलते ही चाय की गरमा गरम प्याली सामने आ जाती थी ।लेकिन लगता है आज श्रीमती जी के सपने में ज़रूर कोई क़ीमती चीज़ गुम हो गई है ।तभी सुबह से उसे खोजने में लगी हैं।हालाँकि श्रीमती के किसी कार्य में बाधा डालने का साहस किसी भी सभ्रांत पति में नहीं होता फिर भी चाय की शहादत की संभावना को ध्यान में रखते हुए हमने दुःसाहस कर ही डाला और धीरे से पूछ ही लिया ,”क्या हुआ ………आज सुबह से क्या खोज रही हो …………मैं कुछ सहायता करूँ ……..?’’ हमारा इतना पूछना था कि वे तुरंत फट पड़ी ,”क्या ढूँढेंगे आप ……..कुछ होगा तो मिलेगा आपको ………?’’ अजीब उत्तर था ……….जब कुछ है ही नहीं तो भला वे ढूँढ क्या रही है ।एक बार सोचा चलो छोड़ो , हो सकता है आज विशेष खोज दिवस हो ।कुछ देर इंतज़ार के बाद हमारे रहा नहीं गया ।हमने बीच में टांग फ़साते हुए पूछ ही लिया -‘’जब कुछ गुमा ही नहीं है तो भला तुम ढूँढ क्या रही हो ………?’’ -“दो हज़ार का नोट ………..।’’ -“कहाँ रखा था ……….?’’ वे तपाक से बोली ,”आप बताओ कहाँ हैं दो हज़ार के नोट …………मैंने सब जगह ढूँढ लिये कहीं नहीं मिला ……….?’’ हम धीरे से बोले ,”सुबह सुबह क्या काम आ गया भला ,……….दो हज़ार के नोट ही क्यों चाहिए भला ? कुछ मंगाना है तो पाँच सो के चार नोट से काम चला लो - - - दो हज़ार का बाद में ढूँढ लेना ………..-।’’ -“मुझे कुछ नहीं मंगाना ……….!’’ -“फिर सुबह सुबह इतनी उखाड़ पछाड़ क्यों ………?’’ हमारा इतना पूछना था कि श्रीमती जी का पारा ओर चढ़ गया ।उनका विशेष प्रसारण प्रारंभ हो गया ,” आप तो सोसाइटी में हमारी इज्जत का जनाजा निकलवाकर रहोगे ।आपको मालूम है कि दो हज़ार का नोट बंद हो रहा है ।सुबह से ढूँढ रही हूँ कि दो हज़ार के कुछ नोट मिल जायें तो मैं भी पड़ोसन से कह सकूँ कि हमारे पास भी हैं दो हज़ार के नोट ………अब जब सब नोट बदलवाने जाएँगे तो सब के बीच में हमारी भला क्या इज्जत रह जाएगी ,जब सबको पता लगेगा कि हमारे पास एक भी दो हज़ार का नोट नहीं है ?’’ हमारा मुँह आश्चर्य से फटा रह गया ………! -“श्रीमती जी ,दो हज़ार के नोट से हमारी इज्जत का क्या लेना देना ……..?’’ -“आपको भला क्या ………? जब पड़ोसन पूछेंगी तो मैं किसी को क्या जवाब दूँगी …….?घर में एक भी दो हज़ार का नोट नहीं है ……….?’’ -“इसमें भला किस बात की बेज्जती ?हम सभ्रांत लोग हैं ,नोटों की जमाख़ोरी नहीं करते।तुम्हें मालूम है ,पिछली बार भी जब एलान हुआ था कि आज रात से ……..नोट चलन में नहीं रहेंगे ………तब भी हम कितने आराम से थे ………?’’ हम इसके आगे कुछ कह पाते उससे पहले ही श्रीमती जी बोल पड़ी ,”आपको क्या पता ,पिछली बार नोट बंदी में भी आपके पास भला क्या रखा था - ………..सभी बड़ी शान से बताते थे ………कोई दस हज़ार कोई पचास हज़ार बैंक में जमा कराने जा रहा था ………किसी किसी ने लाखों रुपये दूसरों के हाथों मज़दूरी दे-दे कर बैंक में रुपये जमा कराये ।बस एक हम ही इस सौभाग्य से वंचित रहे ।आपको क्या पता कितनी शर्मिंदगी महसूस होती थी जब सब अपनी अपनी कहानी सुनने थे कि वे कैसे बैंक की लाइनों में लग कर ,रुपये जमा कराके आये ।लेकिन हम थे कि बस ……….। अब श्रीमती जी की नाराज़गी अपनी जगह है ठीक हो सकती है ।लेकिन हम ठहरे एक आम वेतन भोगी नागरिक ,हमारे पास भला कौनसा कला धन जमा है ।पहले भी जब एलान हुआ किआज रात से ………..के नोट चलन से बाहर हो जाएँगे ।तब भी एक नौकरी पेशा व्यक्ति या एक मज़दूर के पास भला कहाँ घर में कोई धन जमा था ……….और जिनके पास जमा था उन्हें तो कोई असर ही नहीं पड़ा ,क्योंकि सभी ने अलग अलग रास्तों से ,अपनी अपनी व्यस्था कर ही ली थी ।जब आम जनता ही कभी बैंक की लाइन में तो कभी ए टी एम की लाइन में था ।कहीं भी कोई बड़ा तथाकथित नेता या कोई बड़ा आदमी किसी लाइन में नहीं मिला ।तब भी जनता के हितेषी आराम से अपने आलीशान बंगलों में आराम कर रहे थे ।दूसरी बार भी कोविड के समय भी एलान हुआ कि आज रात से …………सब बंद ,तब भी मार केवल ग़रीब ,मज़दूर पर ही पड़ी ।इस बार साहब जी ने आज रात वाला एलान नहीं किया ।क्योंकि पिछले दो बार के रात वाले एलान के परिणाम शायद वे भी पचा नहीं पाये ।इसलिए एलान रिजर्व बैंक द्वारा कराया गया ,ताकि इस बार का ठीकरा भारतीय रिजर्व बैंक के सर पर फूटे ………!वैसे कुछ अच्छा परिणाम मिला तो तारीफ़ साहब की ही होगी और कुछ उल्टा हुआ तो रिज़र्व बैंक भुगतेगा ……..हमें क्या ? डा योगेन्द्र मणि कौशिक कोटा