मातृ भाषा दिवस
एक दिन सुबह सुबह समाचार पत्र से मालूम हुआ कि आज विश्व मातृ भाषा दिवस है।कुछ दिनॊं पहले भी न जाने कौन सा दिवस निकला था पता नहीं। देखा जाऐ तो कभी भी कोई भी विशेष दिवस आ सकता है। वो तो भल हो मीडिया का जो कम से कम मालूम तो पड ही जाता है कि आज कौन सा दिवस मनाना है। वरना हमें तो मालूम ही न चले कि आज कौन सा दिवस पैदा होने वाला है। कभी फादर डे,तो कभी मदर डॆ और अब मदर टंग डे....।कैसा जमाना आ गया है कि आज हमें मातृ भाषा को जीवित रखने के लिऐ भी विशेष दिन का चयन करना पड रहा है।
भैय्या जी ने भी शायद कहीं पढ़ लिया था कि आज मातृ भाषा दिवस है। तभी तो उन्होंने जुम्मन चाचा से पूछ ही लिया - जुम्मन मियां -आपको पता है कि मातृ भाषा दिवस हम क्यॊं मनाते हैं...? अब जुम्मन चाचा अचरज में ....फिर भी शब्दों की जुगाली करते हुऐ बोले-भय्या जी जब किसी पर शामत आती है तो अच्छे-अच्छों को मैय्या और मैय्या की भाषा दोनों ही याद आ जाती हैं।भैय्या जी गम्भीर होते हुऐ बोले -यह मजाक का विषय नहीम है जरा गम्भीरता से बताओ..।जुम्मन चचा बोले- मुझे तो लगता है कि आजकल पढ़ेलिखे लोग अपनी मातृ भाषा भूल न जाऐं इसलिऐ शायाद उसकी याद को ताजा बनाऐ रखने के लिऐ एक दिन तय कर रखा होगा इन्होंनें और क्या....?भैय्या जी मुँह फाडे जुम्मन चाचा की बात समझने का प्रयास कर ही रहे थे कि वे आगे बोले-भैय्या जी विदेशों में किसी को भला कहाँ फुरसत है किसी कॊ याद रखने की या मिलने जुलने की ।इसलिऐ उन्होंने इसका अच्छा तरीका निकाला है कि साल भर भले ही किसी को गालियां देते रहो मगर एक दिन जरूर उसे सम्मान दे दो.....तभी तो कभी माँ का दिन, कभी बाप का दिन,कभी प्रेमिका का तो कभी दोस्त का दिन ......।अब आप ही बताइऐ यदि माँ -बाप, भाई- बहिन ,,दोस्त ,सभी को यदि भूला ही न जाऐ तो भला हर साल याद करने के लिऐ एक दिन निश्चित करने की क्या जरूरत रह जाती है?
इसपर भैय्या जी बोले-कुछ बरस पहले तक होली दिवाली के साथ अंग्रेजी का बॊझ कम करने के नाम पर हिन्दी दिवस शुरू किया गया था लेकिन जितने ज्यादा हम हिन्दी दिवस मनाते गये अंग्रेजी उतनी ही ज्यादा हमारे सिर पर सवार होती गई।
अब देखा जाऐ तो उनकी बात भी सही है।एक ओर तो हम मातृ भाषा का राग अलापते हैं वहीं दूसरी ओर हम अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम के स्कूलों में पढ़ाने पर फक्र महसूस करते हैं। आने वाली नस्ल को तो सही ढ़ंग से यह तक मालूम नहीं है कि हमारी मातृ भाषा हिन्दी है या अंग्रेजी.....? क्योकि उनकी शिक्षा तो अंग्रेजी माध्यम से ही हुई है।ईमानदारी की बात तो यह है कि आजकल मशीनी दौड़ में मातृ भाषा का राग केवल सरकारी आंकडों के लिऐ ही रह गया है।
आज हम ऐसे चौराहे पर खड़े हैं जहाँ राजस्थान के लोगों को राजस्थान में ही उनकी मातृ भाषा, राजस्थानी के लिऐ संघर्ष करना पड रहा है लेकिन दूसरी ओर वही राजस्थानी अमेरीका के व्हाइट हाउस में भी प्रवेश कर गई है।अब भला यह कैसा मातृ भाषा दिवस......?सरकारी गैर सरकारी स्तर पर साहित्यिक चर्चा-परिचर्चा कर खाना पूर्ती की और हो गया मातृ भाषा दिवस......दो चार लेख छप गये आखबारॊं में फोटो आगई बस हमें भी और क्या चाहिये शेष अगले बरस..........॥
डॉ.योगेन्द्र मणि
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जो मर जाता है उसी का कोई "दिवस" मनाया जाता है। मातृभाषायें भी अब उसी श्रेणी में आ रही हैं।
ReplyDeleteमातृभाषाओं की भूलती बिसरती स्थिति को ठीक करने के लिए सार्थक प्रयास ही कहा जाएगा इसे।
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