जनता की छाती पर बोझ
दिन भर इधर उधर से भटकने के बाद शाम को हम जैसे ही घर में घुसे,श्रीमती जी ने तुरन्त सवाल दागा -सुनते हो ,ये चुनाव क्यों होते हैं. ?
हम चौके-भाग्यवान,तुम्हारी तबीयत तो ठीक है। वे तपाक से बोली- वो सब ठीक है आप तो मेरी बात का सीधा सा जबाब दीजिऐगा। अब भला ऐसी लाजबाब बात का हम क्या जबाब दें कुछ समझ नहीं आया फिर भी हम बोले _ सरकार बनाने के लिऐ।।उन्होंने फिर सवाल दागा - संसद में जा कर ये लोग करत क्या हैं?हमने उनकी मोटी बुध्दी के अनुसार मोटे तरीके से समझाया-- करेगें क्या भला सरकार चलाते हैं ,और जो सरकार के बाहर रह जाते है वे सरकार की टांग खीचते हैं ताकि सरकार में बैठे लोगों की चाल सीधी बनी रहे ।
श्रीमती जी को मेरी बात समझ में तो शायद आ गई थी लेकिन समझना नहीं चाह रही थी,बोली-आप भी क्या बच्चों जैसी बातें कर रहे हो।आपको मालूम है देश के कर्ण्धार कहलाने वाले ये सांसद घर बैठे ही जनता की गाढ़ी कमाई पर ऐश करने का काम ही करते हैं बस.....?हम चकराऐ- धीरे बोलो भाग्यवान कोई सांसद सुन लेगा तो हमारा जीना दूभर हि ओ जाऐगा।तुम्हें मालूम है आजकल सांसदों में भी हर वैराइटी के लोग मिल जाऐगें।
मगर श्रीमती जी कहाँ मानने वाली थी बोली- तुम्हें मालूम है पिछले साल तुम्हारे लाडले की कॉलेज में उपस्थिती कम रह गई थी तो उसे परीक्षा में बैठने से रोक दिया था। हम बड़बडाऐ -भाग्यवान कॉलेज और संसद का भला क्या तालमेल.....? वे तपाक से बोली-ये सांसद लाखों रुपये हर माह वेतन और भत्तों के नाम पर लेते हैं मगर संसद में जनता की बात कहने के नाम पर नदारद ही रहते हैं तो फिर इन्हें वेतन और भत्तों का भुगतान भला क्यॊं......?जनता ने क्या उनसे कोई कर्ज ले रखा है?
सारा माजरा अब हमारी समझ में आया। श्रीमती जी ने शायद अखबार में वह रिपोर्ट पढ़ ली थी जिसमें लिखा था कि अधिकांश सांसद पाँच वर्ष में पच्चीस प्रतिशत भी उपस्थिती दर्ज नहीं करा सके। बहुत गिनती के ही सांसद ऐसे थे जिनकी उपस्थिती पचास प्रतिशत से अधिक रही होगी।कुछ तो ऐसे भी है जिन्होंने पूरे कार्यकाल में पाँच प्रश्न भी नहीं पूछे....?फिर भी सबको वेतन भत्ते बराबर....उनमें कहीं कोई कटोती नहीं जबकी आम मजदूर के लिऐ कहा जाता है कि काम नहीं तो वेतन नहीं....।
आखिर हम ऐसे सांसदों कॊ ढ़ो क्यों रहे हैं..........?ये किसका भला कर रहे हैं देश का ,समाज का, या स्वंम अपना और अपने परिवार का.....?क्यों न ऐसे जनता पर बोझ बने सांसदों से संसद को मुक्त कराकर ऐसे लोगों को चुनें जो आपकी और हमारी बात को समझ सके और कह सके..........!
डॉ.योगेन्द्र मणि
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